इस साल गुजरात में हुई भयंकर सांप्रदायिक हिंसा को दस वर्ष पूरे हो रहे हैं l ये हिंसा देश के इतिहास में बदनुमा दाग की तरह याद की जाएगी l
हम रोष प्रकट करना चाहते हैं, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ जो उस समय गुजरात में बीजेपी की सरकार के कर्ताधर्ता थे, और जिसने चुनावों में सफलता पाने और अपने राजनैतिक अस्तित्व को मज़बूत करने के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को अपना हथियार बनाया l मोदी एक बार फिर इसी हथियार के ज़रिये आगे आने वाले चुनावों में उतरने कि तैयारी में हैं l
पिछले दस सालों के दौरान मोदी ने प्रशासन के साथ मिलकर फरवरी 2002 के हिंसा में बर्बाद हुए मुस्लिम परिवारों को न्याय न मिल पाए इसके लिए न्याय मिलने की प्रक्रिया को हर तरीके से प्रभावित करने से लेकर न्याय के प्रयासों को रोकने तक की कोशिशें की हैं l ये हिंसा बिना किसी रोकथाम के कई दिनों तक चलती रही l इसके पीछे ना केवल सरकार की उदासीनता ज़िम्मेदार थी बल्कि केंद्र और राज्य स्तरों पर बीजेपी की सरकारों का बढ़ावा देने वाला रवैया भी एक महत्वपूर्ण कारक था l ये वे लोग थे जिनमें नर-संहार को रोकने की राजनैतिक और नैतिक इच्छाशक्ति का लेशमात्र भी न था l
बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ( आरएसएस) अपने हिन्दुत्ववाद के खुले प्रदर्शन में कभी किसी प्रकार का संकोच नहीं किया. उनका हिंदुत्व भारत को एक सम्पूर्ण हिंदू राष्ट्र के रूप में देखता है जिसमें मुसलमान, ईसाई और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के नागरिकता से जुड़े अधिकार हिंदुओं के बाद होंगे l
मोदी की हिंदुत्व के प्रति वचनबद्धता जग-ज़ाहिर है परन्तु वे अपनी चालांकी और छलावे के माध्यम से सबको भ्रम में रखना चाहते हैं और इसके लिए वे विकास और सुशासन की भाषा बोलते हैं l वे जहाँ एक ओर खुले तौर पर गुजरात में खंडित हिंदू- गौरव कि सोच को उकसाते हैं वहीँ दूसरी ओर विकास, सुशासन और निवेश की कहानी सुनाते हैं l मोदी प्रशासन ने 2002 कि हिंसा के पीड़ितों के लिए न्याय मांग रही आवाजों को कुचलने की कोशिश के आलावा गुजरात के समकालीन इतिहास को भी,राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ती के लिए, नए सिरे से लिखने की कोशिश की हैं l यह एक भयंकर संकेत है जिसके प्रति हमें न केवल सजग रहना पड़ेगा बल्कि इसका सामना करने के लिए अपनी कमर भी कस लेनी चाहिए l
हम कड़े से कड़े शब्दों में इस प्रकार के जन संपर्क अभियान की भर्त्सना करते हैं जिसके माध्यम से गुजरात में निर्दोष लोगों के नर संहार के दाग को छुपाने की कोशिश की गई है क्योंकि इसके माध्यम से लोगों के दिल में बैठा डर और गहरा होगा और अन्याय के खिलाफ उठने वाली आवाजें इस छलावे में खो जाएँगी l
निगाह का यह मानना है कि केवल एलजीबीटीआई (LGBTI) अधिकारों की बात करके हम क्वीयर राजनीति के साथ न्याय नहीं कर सकते क्योंकि जिस वृहत समाज का हम सब हिस्सा हैं उसमें पूर्वाग्रह केवल यौनिकता के बारे में ही नहीं बल्कि और बहुत सी दूसरी चीज़ों के बारे में भी है जो यौनिकता से परे हो सकती हैं l
क्वीयर होने के नाते हम समझते हैं कि शब्दों में लोगों को हाशिए पर ले जाने कि ताकत होती है और इसलिए हम ऐसी गतिविधियों की कड़ी निंदा करते हैं जिसमें शारीरिक और यौनिक हिंसा का प्रयोग शक्ति प्रदर्शन, लूट मचाने और भय का वातावरण पैदा करने के लिए होता है l
यदि आज़ादी और न्याय सबके लिए बराबर नहीं हैं, तो वे वास्तव में वे न्याय और आज़ादी नहीं हैं l हम जेन्डर, यौनिकता, जाति और वर्ग से जुड़े अन्याय के अलग-अलग रूपों के खिलाफ संघर्षों एक दुसरे से जुड़ा हुआ मानते हैं l
गुजरात में सन् 2002 में हुए दंगों की दसवीं सालगिरह पर, हम दंगा-पीड़ितों के लिए न्याय और दोषियों, चाहे वे किसी भी राजनैतिक दर्जे के हों, के लिए सज़ा की मांग करते हैं l
निगाह
२९ फरवरी, २०१२
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